मित्रो , गुलाबी सा मौसम है . लेकिन सोच के दायरे उलझे उलझे है . जनाब आप की सोच के नहीं ,मेरी सोच के दायरे उलझे उलझे से हैं. क्या पूछते हो जनाब क्यूँ? क्यों उल्झे हैं ?
बताता हूँ ,बताता हूँ ...
सुनिए मोहतरम ! दुर्गा -अष्टमी के अगले रोज़ ही अख़बार कन्याओं की घट रही संख्या को ले कर काफी कुछ लिखा,पढा रहे थे. हम हर साल इस मौके पर ऐसा लोइख पढ़ते हैं छोड़ देते हैं .कन्या भ्रूण हत्या को ले कर काफी कुछ लिखा जाना एक लम्बे समय से जारी है .
मित्रो गर्भ से बच कर जन्म लेने वाली कन्या को कब कब कितनी बार मरना पड़ता है इस के बारे भी ये सुधि जन जानते होंगे . मैली नजरों के वार ,रह चलते कानों में पिघले सीसे की सी पडती फ्बतिआं,दहेज उत्पीड़न , बलात्कार , दुराचार ,शोषण ,इत्यादी इत्यादी कितने मोडों पर मरने को विवश होती है लडकियाँ ...
कन्या भ्रूण हत्या पर लिखने वाले सुधि जन ,कदाचित इस का निदान भी जानते होंगे और उपचार भी .
हम बोले गा तो बोलोगे की बोलता है
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deepzirvi9815524600
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