सरस्वती के वीणा तार ,करें झंकार ,सुनाएं धवल कीर्ति गाथा
कविजन जन को .
किन्तु जो उठते है मन अटल वितल सुतल पर झंझावात का से
कहूं ?
में भीरु हूँ कायर हूँ में है स्वीकार मुइझे ,में घूमने वाली हर कुर्सी
से डरता हूँ डर- डर मरता हूँ . सब से चिचली अंगुली पर लहू लगा
कर शहीदों में नाम करना चाहता हूँ .में चाहता हूँ बोलूँ ,बोलें ,मेरे
बोलने पर तो रहें बोलते . किन्तु कीन्हों ने भगत सिंह की नहीं
सुनी नानक की नहीं सुनी गौतम की नही सुनी वो मेरी क्या सुने
गे .
प्रश्न भी तो ढंग के नहीं पूछ पाता मैं. उत्तर देने का शऊर भी नहीं
. जूते खाने लायक कपाल भी नहीं बची अब तो . नहीं तो मैं पूछ
ही लेता क्या कसूर था औरंगजेब का ? क्या कसूर है सच्चा सौदा
का ? और पूछ हे लेता की हम कौन हैं किस के नाम लेवा हैं ?
गुरु गोबिंद सिंह के अथवा औरंगजेब के ??
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deepzirvi9815524600
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