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किताब "बोलोगे की बोलता है "का कलेवर ...

किताब "बोलोगे की बोलता है "का कलेवर ...
...बोलोगे कि बोलता है

...बोलगे कि बोलता है ,आन लाइन


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Friday 11 November 2011

-कुछ अनौपचारक बात चीत हो जाएdeepzirvi9815524600






नमस्कार मित्रो ,

कुछ अनौपचारक बात चीत हो जाए , काफ़ी दिनों बल्कि महीनो से सर्वर खराब सा
था हिन्दी भूल गया था , अब ठीक हुआ है हिन्दी जानकार हुआ है अब आनद आए गा
। मेरी बात सुनो गे समय है आप के पास ? आपको तो अन्यंत्र जन होगा, कई काम
करने होंगे , कई व्यापार आरम्भ कर रखे होंगे आपने इस महंगाई के जमाने में
। आप उन को समय दो यहा अपना समय नष्ट क्यो कर रहे हो ।

बडी हठी प्रकृतीहै आपकी , आप तो बात पढ़ के ही डांटोगे

बंधुवर , बात ये है की ये देश किसका है? किसी की बपौती है क्या ? न एक
बात जो ये खबरों वाले व्यापारी ढोल पीट पीट कर गा बजा रहे हैं मुझ को हजम
नही हो पा रही , वो ये की देश ने एन आम चुनावों में फ़िर से गांन्धी
परिवार को देश की बाग़ डोर सौंपी है । ये गाँधी का देश है इत्यादी ।

मेरा प्रश्नचिंह ये है इक ये देश क्या मात्र गाँधी नाम लेवओं का है ?

मूल मुद्दा व्ही है । लोकतनत्र की आड़ में राजशाही नही तो और क्या है ये
? आम जन से सरोकार नही ,पेराशूट से नेता उतारे जा रहे हैं , इस में हम
कहा हैं? ये देश हमारा भी तो है , है न?

राजीव जी कहते थे दिल्ली से भिजवाया एक रुपया जनता तक्क आते आते १८ पैसा
रह जाता है, रहोल जी बताते हैं अब १० पैसे रह जाता है । हम जनता करे तो
क्या करे ।

अम्बानी की दौलत दोगुनी हो अथवा चोगुनी हमे उससे क्या ? लकडहारा तो लकडी
ही काटे गा ,

मूंडने वाला उस्तरा लोहे का है की सोने का इस का मुंड जाने के लिए पैदा
होने वाली हम सी भेड़ों को कोई फर्क नही पडेगा।

कसे को कसता ये बजार का मायाजाल , करे जो जनता को कंगाल, छीने आटा दाल।
kaho kya hai aapka khyaal ... hum boleygato bologay ki bolta hai...

हम और आप ख़ुद को जो आम आदमी कहते हैं , क्या सच में आम आदमी हैं ? हम और
आप जो छोटे हों अथवा बडे , विद्यार्थी हो अथवा अध्यापक , नर हों अथवा
मादा , क्या आप आम हो ? क्या हम आम हैं ? हम जिन के बूते पर लोक तंतर है
क्या हम आम हो सकते हैं? हमारी चेतना सुप्त है कदाचित येही कारण है की वो
कुर्सी के पिस्सू हमे आम आदमी कहते हैं । हम जलते हैं तो उन की राजनीति
की रोटियाँ सिकती हैं । यदि हम १०० प्रतिशत मतदान करना आरम्भ कर दें तो
राज नीति की गंदगी दूर कर सकते हैं । आप का क्या विचार है ?आप अपनी
भावनाओ से भी अवगत करवाएं गे तो चर्चा आगे चलाई जा सकती है .

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नीरो रोम में ही हो ये बेशक जरूरी तो नही । नीरो की जात तो कही भी पैदा
हो सकती है । अभी मै भारत का इतिहास पढ़ रहा था सं १६०० का भारत और अब का
भारत कुछ फर्क नही दिखा , मन विचलित हुआ ,६० साल हम ने क्या झक मारी ??
अब भी मीर जाफर -विभीषण बाकी हैं । अब भी विलायती आकाओं की खुशनूदी हासिल
करने की ललक बाकी है । रूपया जाए भाड़मे लाडले डालर की सेहत ठीक रहे ,
हमारी जनता बेशक भाढ़झोंके हम विश्व बैंक की चरण चाट चटुकारिता करते
रहेंगे





.. कोई नही बोलता तो हम भी क्यो बोलें । हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है

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जी लीजिए एक बार फ़िर चुनाव का चोंचला चला और थम गया । यु पि ऐ की हाथ में
लगाम आ गयी देश की । नेता का नाती देश की थाती कदाचित येही मूल्मंतेर हो
गया देश में । एक नेता का कुछ लगता भावी प्रधान मत्री तक हो सकता है
किंतु एक आम आदमी का बेटा हो तो उसे कोई ८० रूपये दिहाडी पर कोई मजदू भी
न रखे । अब कोई भी नही बोलता तो हम ही क्यो बोले हम बोलेगा तोह बोलोगे की
बोलता है

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चुनाव चौपाल की गहमा गहमी की बाद अब क्या हो गा ? कौन जीते गा कौन हारे
गा ? हरेक की मन में अब येही सवाल बुदबुदा रहा होगा ।

ममता समता अथवा मानवता ? माया काया का भरमाया वोटर वोट तो दे आया किंतु
अब?ई वी ऍम मशीन में कैद है भारत भाग्य विधाताओं का भाग्य ।

कमल खिले अथवा हाथ उठे जीते कोई भी हरे गा आम वोटर



नमस्कार ,जन जन व्यथित है अर्थ व्यवस्था अव्य्व्य्स्थित है जय हो , देश
दशा को दिशा की आवश्यकता है , लिटे,जेहादी , अलकायदा, और स्वर्थी तत्व
क्या क्या है जय हो ,खा जाए गा अमेरिका का पालतू विश्व बैंक हमको , हमारे
साधन संसाधन सभी पर उस की गिध्ध दृष्टी है जय हो , भारत के राजनितिक
गलियारों में भारती नेताओं से ज़्यादा अमेरिकी राजदूत रुचितहै जय हो ।
क्या सभी व्ही देखने को बाधित हैं जो उनको अब मीडिया दिखाए गा ।

खेलने वाले को नही देख कर खिलोने देखने पडे गे ?



जय हो जय हो जय हो , हम बोलेगा तो बोलो गे की बोलता है
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विकास किसी भी देश का आधार भूत अधिकार है किन्तु ये विकास कहीं विनाश तो
नही इसका निर्णय कौन करे?

रोड सुधारकार्य कर्म पूरे देश में जारी है । पूरे देश की दशा का तो नही
जानता लेकिन मैं अपने इलाके की बात करूं ? मेरे इलाके में सडक बन रही है
सड़कें बन रही है । विकास हो रहा है , किन्तु सडक किनारे लगे पेड पौधे
सहमे खडे हैं । सड़कें एक मार्गी थी दो मार्गी हुई , चार मार्गी हुई ,
लेन बढीं , अब और आगे बढ़ने से पहले सड़कों को किनारे खडे पेडों की बली
लेनी होगी । दसियों बरसों में पलकर अपना विराट स्वरूप पाया है अब अगर कट
गये तो कट गये , कौन वारिस होगा ? कौन रोयेगा धरती पुत्रों के शवों पर ?
कौन हाय भरेगा किसका किया?
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आए तुम याद मुझे ,स्मृतयो पर यौवन छा गया । ये तुम ही थे न जिसके रहते
एकन्नी का खो जाना बहुत बडा नुक्सान माना जाता था । अब तो जाने कितने
रिश्ते खो चुके है .अब इतनी बार हैरान हो चुके है की अब हैरत ही नही होती


हाँ में तुम्हारी ही बात कर रहा हूँ , तुम्हारे रहते कोई मातम नही था
,कोई चिंता नही थी कोई गम नही था । शेहनशाह थे हम ।

होश नही थी मस्ती थी , अब सोच रहे हैं हम तेरी गोद में सही समय ही आए .

मेरे बचपन ,अब की हवा और है अब की मों का बस चले तो वो भी बच्चो को
नर्सरी के जी करवा कर ही पैदा करें , बचपन को निगल गयी है आज की हवा ।
कुछ व्यापार होती शिक्षा ,और दीक्षा के बिना दी जा रही शिक्षा देख कर आज
तेरी बडी याद आई । मेरे बचपन तू था भला टीबी हमारे माँ बाप भी भले थे
जिनको अभी प्रतियोगिता के नाग ने नही डसा था । तब मास्टर के डांटने पर
मास्टर की पिटाई नही करवाई जाती थी । मास्टर भी व्यापारी नही बने थे ।
स्कूल में पढाई करवाई जाती थी , नैतिकता थी , अब ---हम बोले गा तो बोलो
गे की बोलता है
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लोगों को अक्सर ये कहते सुना है : यह जंगल राज है क्या?

मेरी सोच के दायरे यह सुनते ही घूमने लगते हैं ,काश! यह जंगल राज ही हो जाए ।

सभ्य समाज के किस्से सुन सुन कर मुझे जंगल राज का ताना सुनना बहुत बुरा लगता है ।

जंगल राज का सीधासा कानून है सीधा सा दर्शन है "जीवो जीवस्य भोजनम "

वहां कोई किसी को अकारण नही मारता । वहां पेट भरने कि अभिलाषा है पेटियां
भरने की आकांक्षा नही । वहां नंगा होने/करने के लिए पैसे लिए दिए नही
जाते। वहां रहने वाले जन्म जात नंगे हैं लेकिन हम सभी से लाखों दर्जा भले
चंगे हैं। वहां धर्म का पंगा नहीं है । जाती के नाम पर दंगा नहीं है ।

बेशक वहां एक ही धर्म है पेट भरना और वंश वृद्धी करना।

वहां जो होता है खुले आम होता है । वहां जोड़े शराफत का नकाब ओढ़ कर
खुराफात नही करते । वहा अभिसार होता है खुलेआम होता है ,यदि वहां वार
होता है तो खुलेआम होता है ।

वहां पेट भरा होने पर हिंसक से हिंसक जानवर भी किसी को घाव नही देता ।
वहां प्रकृतीको सहायक/पालक मान कर उसका दोहन होता है शोषण अथवा बलात्कार
नही ।

वहां किसी एक जाती विशेष का खुलेआम संहार नही किया जाता । वह आहार के लिए
शिकार करतात होंगे लेकिन मात्र व्यवहार के लिए नही ।

वहां जो है वो आडम्बर नही हकीकत है ।

कुछ लोग कहते है वहा अनुशाशन नही , संस्था नही हैं । ऐसे महानुभावों ने
कदाचित चींटी का अनुशासन एवम हाथी,चीता,बया इत्यादी की परिवार व्यवस्था
नही देखी । उन की परिवार व्यवस्था देखिये , वह हम से बढिया परिवार चलाना
जानते हैं । कारण ? सोचिये , सोचिये न ; कारण यह की वहां परिवार घर बनाना
चलाना मादाओं की कार्य सूची में है । वहां परिवार की मुखिया मादा होती है
हमारी तरह नही है ! वर और घर चुनाव मादा का माना जाता है ।

वहां दुराव छुपाव नही है ,जो है सामने है ।

और में सोचता हूँ की यदि जंगल राज में रहने वालों को हमारी जुबां मिल गयी
तो वह यूँ न कहने लगे "क्या मानव राज है क्या"

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हम कुछ नही बोलेगा हम बोले गा तो बोलो गे की बोलता है

दीप जीर्वी

९८१५५२४६००


आप सभी सुधि जन , देश दशा से अवगत हो । आज की प्रिस्थित्ति केवल आज है
ऐसा नही । जब ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत को ग्रस रही थी , आज से ४०० साल
पहले भी ऐसा ही माहौल था । अंधे को बहरा घसीटे जा रहा था । अपनी अपनी
ढपली अपना अपना राग था । रिश्वतखोरी , स्वार्थ तब भी पराकाष्ठा पर थे ।
मीर जफर जय चाँद , अम्भी युगों से थे हैं और रहेंगे । भारत को इन के
रहमोकरम पर छोढ़ देना चाहिए ?

कारण कदाचित जानते सभी हैं कि भारत को खाने खरीदने वाली शक्तिया तो एक
जुट हैं किंतु भारत हितैषी शक्तियां बिखरी अथवा बिखराई गयी है। आवश्यकता
इन को एक जुट करने की हैं । अब जब कोई नही बोलता तो में क्यों बोलू ।

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आज सोचा कि कुछ कहा जाए अपने मित्रो से । मित्रो अपने आस पास कितना कुछ
है जो नही होना चाहिए और हो रहा है, कितना कुछ है जो होना चाहिये और नही
हो रहा आख़िर क्यो आख़िर कब तक .



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गर्म माहोल में शान्ति की बात ....

गर्म माहौल है , मुम्बई के घाव अभी ताज़ा हैं , सिहरी मुम्बई उभर नही
पायी है , और घाव लगने को बेताब हैं । वो वारभी करते है और चाहते है की
हम शान्ति का पाठ करें । वो यह नही जानते इक हमारे पास बंसी भी है और
वक्त पडने पर बंसी की बंदूक बनाना हम भली भाँती जानते हैं ।

भारत में बसने वाला भारतीय है । हमारा वेश भेष परिवेश कुछ हो KINTU हमारा
देश एक है ।

जय हिंद का नारा लगाने वाला अब्दुल हमीद भी भारतीय था, मुहम्मद रफी ,
युसुफ खान , से लेकर कितने नाम हैं जो भारत माँ की मनी माला के लाल हैं ।

दोस्तों , न हिंदू बुरा है न मुसलमान बुरा है,

आ जाए बुराई पे तो इंसान बुरा है,

जय हिंद
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सुधि जनों से सुना कि सवतन्त्रता आ गयी , कदाचित आ भी गयी हो गी किन्तु
किन के लिए ?कालाधंधा करने वाले गोरे लोगों के लिए ? अथवा गोरों की
लोब्बिंग करने वाले काले लोगों के लिए ? हमे लगा ki हम सी उलटी खोपडी में
सहज भावसे यह बात नही आए गी सो आप से पूछने चला आया।

--
महात्मा गांधी जी की महानता को प्रणाम .

साबरमती के संत, बोलेतो अपनेबापू , हाँ बाबा वहीएक लाठी एक लंगोटी वाले ,
वोही मोहनदास करमचन्द गांधी , अब ठीक पहचाना आपने । वोही जिनके बारे ये
कहाजाता है की उनकी ३० जनवरी १९४८ को हत्या कर दी गयी थी वही बापू गांघी
आज कल नोटों पर आसन जमाए दिखते हैं । उन की लीला अपरम्पार है । आज सरकारी
दफ्तरों वाले १०० प्रतिशत गांधी वादी हो गये हैं ।

जिन का दांव नही लगता वो इमानदारी का दावा करते हैं अन्यथा सदाचार एवम
ईमानदारी उसी के जिस का दांव नही लगता ।

सरकारी दफ्तरों में तो पाषाण से पाषाण ह्रदय भरे मिलेंगे ,किंतु बापू के
स्वरूप का नोटों पर दर्शन कर लेने के बाद उन का ह्रदय परिवर्तन हो जाता
है । वह पाषाण से एक दम नवनीत हो जाते हैं । यदि विश्वास न हो तो आप सुधि
जन स्वयं प्रयाग कर के देख लें ।

हम बोले गा तो बोलोगे की बोलता
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हिन्दू शक्ति पीठों में दो शक्ति पीठों के दर्शनों के लिए जाने का अवसर
मिला तो मैं अपनी लालसा का संवरण नहीं कर पाया ।

हिमांचल परदेस के चिन्तपुरनी -ज्वालाजी नामक दो शक्ति पीठों के दर्शन
करने की अभिलाषा लिए हम ,यानि मैं और मेरे वृद्ध माता जी ,मेरी धर्मपत्नी
एवम मेरे पाँव दर्जन बच्चे हम जय माता दी कह कर चल दिए ।

एक संक्रान्ति ,दूसरे शनिवार तीसरे पंजाब के स्कूलों में ग्रीष्मकालीन
अवकाश सोने पर सुहागा वाला काम हो गया भक्त जनों की भीड़ दर्शनीय थी ।

महामाई ने अपने दर्शन तो दिए , बे शक किलोमीटर भर लम्बी कतार में इतजार
की तपस्या करवा कर दिए , साथ ही हमी दिखाया की लोग वहाँ आकर भी अपनी
बन्दर घुलाटियाँ मारना नहीं छोड़ते । कतार तोड़ना , अपनी बारी का इंतज़ार
न करना , सोर्स फोर्स , और पिछले दरवाजे का इस्तेमाल ;भारत भर की सभी
खूबियाँ एन देवी द्वारों पर एक साथ देखने को मिलीं । महात्मा गांधी की
यहाँ भी जय थी शायद ??

सब देख कर स्वअनुशासन की कमी अखरी महसूस हुआ की हम श्रधा आस्थानों पर
जाकर भी अहम नही छोड़ते । प्रबन्धन करने वाले भी कुप्रबन्धन में जुटे
दिखे ।

ज्वाला जी में दर्शनार्थियों की मुख्य मन्दिर में जो दुर्दशा देखीमैं सहर
उठा , करीब एक किलो मीटर लम्बी कतार की तपस्या के बाद जब हम मुख्य मन्दिर
मैं प्रवेश करने लगे तो धक्कम पेल की पराकाष्ठा देखने को मिली । मेरे
वृद्ध माता जी और मेरे समेत मेरी बीवी बच्चों के सभी का दम घुटने को हो
गया था ।

मेरे मन में एक बात आई की लाखों करोडों बच्चो की अराध्य माँ, करोडों
रूपया चदावा प्राप्त करने वाले शक्तिपीठों में भक्तों की यह दुर्दशा ,
आख़िर क्यों ? आख़िर कब तक ??

हम बोलेगा तो बोलो गे की बोलता है
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कोई उस को जाकर ये कहदे न , हम जाग रहे हैं , वो भाग जाए अपने आप ,
बर्तानिया से पूछ ले कैसे भगाया करते हैं हम । मर्जी उस की है वो ख़ुद
जाएगा की हम ही करें कोई सूरत उसे भगाने की , सुना है उस को तो आदत है
मार खाने की ।

वेअतनाम,जापान,चीन ,बग़दाद, कहा तक सुनोगे , कहा तक सुनाऊँ ?

क्यूबा को उस ने धौंस दी ,क्यूबा ने नही मानी ,उस की धौंस क्यूबा को रास
आ गयी क्यूबा अपनी जढ़ की तरफ लौट आया , उस की गुलामी को अलविदा कह गया ।

उससे कहो की वो हम को भी धौंस दे न ,हमारी कुर्सी की जूओं ने जनता को गलत
बहका रखा है कीअगर वो हमारे ऊपर पाबंदी लगता है तो हम तबाह हो सकते हैं ,
गलत बयानी की पराकाष्ठा है ये । उस में डीएम हो तो पाबंदी लगा क्र दिखाए
न , उस की मोनसेंटो /कारगिल सभी धूल चाट रही दिखेंगी ।

हमारी जेब काटने वाले जेबकतरे सुन माँ के लाल जाग रहे हैं भाग सके तो भाग
भी नही कहेंगे ।

हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है
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जब चाँद में बुढ़िया का चरखा कातना सच था । जब मट्टी के घरौंदे बनाना
अच्छा लगता था , जब हम सर से पाँव तक अपने पापा की आकांक्षा थे पापा कहते
थे " "।

जब अलहढ़ उम्र हमारी थी ,जब आंखों में बसी खुमारी थी , जब हम को नींद
प्यारी थी , पापा कहते थे :" "

जब चाल में मतवाला पण था , जब आ के लौटा बचपन था , जब सपनों में सारंगी
थी , जब ये दुनिया नवरंगी थी ,

पापा कहते थे " "

जब रोक भली न लगती थी , जब टोक भली न लगती थी , अपने सपनों पर यौवन था ,

पापा कहते थे: " "

पापा कहते थे जग जाओ , अपने किसी ध्यय को अपनाओ , सपनों के पीछे मत भागो
, ऐ मूढ़ उठो निद्रा त्यागो । तुम देश को क्या देते हो सुनो इस बात पे
अपना सच जानो , अपने को बेटा धन्य मानो । तुम भारत भू के बेटे हो । माँ
भारती अपनी जननी है । इस की सेवा भी करनी है । तुम कानों को खुला रखना ,
तुम आँखों को खुला रखना , अपनी जिव्हा को कस रखना ।

बिन बात बात करना न कभी ,जिव्हाघात न करना कभी ,भर जाते घाव हैं गोली के
, भरते न घाव पर बोली के । टीबी से हम कुछ न कहते हैं , बस देखते हैं सुन
लेते हैं ।
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कभी तो बुरा मनाओ :

अमां यार बडे अहमक किस्म के इंसान हो , लोग कहते हैं बुरा मत मनाओ और तुम
कहते हो कभी तो बुरा मनाओं : मुझे यकीन है की आप पाठकवृन्द येही सोच रहे
होंगे ।

आप अपनी जगह ठीक होंगे किन्तु गलत मैंभी नही हूँ । सदियाँ गुजर गयी बुरा
नही मनाया हम ने । हमारे ऊपर हमारे शाषक/शोषक रहे हों ,आत ताई हमलावर रहे
हों ,अब आजकल की बहुदेशीय कम्पनियां हों ,देस्सी शासक/ शोषक हों , जो
करें जैसे करें करते रहें हम ने कभी बुरा मनाया? नही न।

वो हमें घूरता है हम चुप्पी साध लेते हैं । वो लोगों को देह्श्तग्र्दकहता
है लेकिन कोई भी दहशत गर्द उस की गर्द तक भी नही पहुँचा है ? नही न?

हम बुरा मनाते हैं? नहीं ।

हम अपनी जमीन पर उस के कबाड़ को आने देते हैं हम ने बुरा मनाया? वो हर
बरस करोडों टन प्लास्टिक कचरा हमारे यहाँ डम्प करता है हम कुछ बोले? उसने
हमारे साधनों संसाधनों पर अपनी गीध दृष्टी बनाई है हं बुरा मनाते हैं ?
नही।

हमारी जमीन पर उगने वाले जहर रहित अनाज फल वहां जाते हैं हम ने बुरा मनाया नही,

मोबाईल कंपनीया और डी टी एच क्म्प्नीय हवा बेच बेच कर अरबों डोलर डकार
गयी हम ने बुरा नही मनाया , हमारे अर्थ भवन को ये लील चले हम ने बुरा नही
मनाया । आख़िर कब तक?

कभी तो बुरा मनाओ, नही मनाते न सही जब चिडिया चग गयी खेत तब हम को मत
कहना । हम तो अब भी चुप है जब भी चुप्प रहें गे ,हम बोले गा तो बोलो गे
की बोलता है.
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तरक्की के अनेक सोपान

बात कहां से चलाऊँ कि बात आप तक पहुंचे । आप सुधि जन मेरे ब्लॉग को विसिट
करें न करें , मैंअपनी बात कहनी जारी रखूं गा इस पोस्ट मैं माँ बेटी कि
तस्वीर से आप ये अंदाजा मत लगा लेना कि मैं आज माँ बेटी, या भ्रूण हत्या
, कन्या भ्रूण हत्या के विषय पर अपना गुबार निकालूँ गा ? नहीं उसके लिए
कदाचित एक करोड़ बीस लाख ब्लोगेर्स और बैठे हैं , वो लिखते रहेंगे । मैं
,क्यूँ आपका और अपना समय इन सब बातों में बर्बाद करूं ?

जी मैं आज तरक्की के सोपानों की बात करूंगा । हम ने इतनी तरक्की कर ली ?
हम फैशन की पराकाष्ठा को पार कर चले हैं । कभी बालों के फैशन, कभी कपडा
लत्ता के फैशन,कभी गाड़ी फैशन की कभी नारी फैशन की , कभी जूते फैशन के ,
तो कभी दाह्डीके फैशन ?? सोपान दर सोपान चलते हुए अब फैशन की जो बानगी
हमारे समाज मैं देखने को मिल रही है उन में है:

बोलने का फैशन-हमारे यहाँ आजकल बोलने का फैशन है किसी समय भी विषय पर
अथवा बिना किसी विषय के बोला जा रहा है । राजनीती / कुशासन /दुशासन /
भ्रष्ट नेता / क्न्यभ्रून हत्या / दहेज/

इत्यादी इत्यादी । अनेक विषयों पर भाषण एवम सम्भाष्ण धडल्ले से ........
बेरोक हो रहा है । इक्न्तू इन का असर महाशून्य ? क्यूँ ??

ऐसे कई प्रश्न चिन्ह कीडो की तरह मेरे खोखले मस्तिष्क को ओर खोखला कर रहे
हैं । हमारे पास बिल्ली है, घंटी है , तब कमी क्या है , कहाँ है ??

दहेज़ पर भाषण देने वाले अगर ख़ुद १०० प्रतिशत दहेज न लें , मादा भ्रूण
हत्या की ज़ुबानी वकालत करने वालों से कोई ये पूछे की उन्हों ने अपने
परिवार में कितनी भ्रूण हत्या करवाई/रुकवाई ??जो जो जहाँ जहाँ जिस जिस
विषय पर फैशन के लिए बोले उसे सिर्फ़ एक सवाल किया जाए की उसने जो बोला
उस के लिए उस ने अपने परिवार नि क्या किया ??

अब मुझे लो , में खेती विरासित मिशन जैतो , पंजाब के सम्पर्क में आया
जाना की जल जीवन है । जल मुफ्त नही अनमोल है , और इस विषय का प्रचार करने
के लिए पत्रक छपवा कर बांटने आरम्भ किए , २ साल तक यह काम किया लिकं वही
बात अपने घर में अभी भी बेकार पानी बहता देखता हूँ खून खौलता है । अब
नियम ये लिया है जब तक मेरे घर से पानी बेकार बहना बंद नही होता में
क्यों किसी को पानी बेकार बहाने से रोकूँ ? हम बोले गा तो बोलो गे की
बोलता है॥

-0-0-0-0-

जूता धन्यवाद , आप सभी सुधि जनों का धन्यवाद । आप ने अपना कीमती समय दिया
, अब अपनी कीमती राय से भी मुझे अवश्य अवगत करवाएं । दीप जीरवीया जूता
कल्चर ,कुछ भी कहो जनाब ,ये नवीन तम आविष्कार कारगर सिद्ध हुआ लगता है?
आप को नही लगता । चलिए छोडिये , जनाब ये जूता कल्चर पुराना है । पहले
इसके दिव्या दर्शन लोकसभाओं विधान सभाओं में नेता गणों के कर कमलों में
हुआ करती थी आम जनता ने तो जुमा जुमा आठ दिन से जूता फैंक शुरू किया है ।

जर्मन सम्राट कैसर को जूतों का शौक था सुना है उसके पास विशाल संग्रह था
। जूतों में बंटती दाल हर नेता ने खायी है अब साक्षात् जूता खाने का
सौभाग्य इसको मिलता है देखो । अभी तक तो ये जूता नाम का अस्त्र /शास्त्र
सटीक निशाने पर बैठा नही है ।

ये ब्लाग आरम्भ कर के में भी कदाचित जूता पान करने की कवायद ही कर रहा
हूँ । पता नही मेरी किस पोस्ट से कौन बिदक जाएगा और मेरे लिए जूते पक्के
हो जायेंगे । गोली भी मिल सकती है ।

मुझे अपने बच्चों से बैर नही है । इस लिए में नही बोलूँगा , लोग दंगा
करें ,लोग पंगा करें , सरकारी सम्पति को दावानल में बदल दें । मै नही कभी
नही बोलूँगा कि सरकारी सम्पति को नुक्सान पहुंचाने वाले संगठन के खाते
सारे नुक्सान की भरपाई डाली जाए ; न ही ये कहूँगा कि देश की सम्पती को
नुक्सान पहुंचाने वाले को देशद्रोही माना जाए । देश द्रोह का
मुक्क्द्द्मा चलाना चाहिए ।

मैं ये क्यूँ कहूं जो बडे बडे खोपडे देश चला रहे है ये सब वो भी जानते
हैं वो कुछ नही करते वो तो कर्मयोगियों का मुखौटा पहना अकर्मण्य लोगों की
भीड़ है । जिन के लिए भारत मे लोग नही बस्ते वोटें अथवा जेबें रहती हैं ।

वो वोटों को बांटने का काम करते हैं ,लोगों को बांटने का काम करते है ।
वो चाहें तो नियम कानून को खिलौना बना कर खेलने वालों का नामोनिशान न रहे
। अब अगर वो दिग्गज कुछ नही बोलते तो मैं अपने सर को जूता जंक्शन क्यो
बनाऊ? हम भी नही बोलेंगे । हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है ।



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Friday 16 October 2009

दीपावली के पावन पर्व पर

दीपावली के पावन पर्व पर
 
प्रार्थना करते है कि परम् पिता परमात्मा आपको

गणेश की सिद्धी
लक्ष्मी की वृद्धि,
चाणक्य की बुद्धि,
विक्रमादित्य का न्याय,
पन्ना सी धाय,
कामधेनू सी गाय,
भीष्म की प्रतिज्ञा,
हरिश्चन्द्र की सत्यता,
मीरा की भक्ति,
शिव की शक्ति,
कुबेर की सम्पन्नता,
विदेह की विरक्ति,
तानसेन का राग,
दधीचि का त्याग,
भृर्तहरी का बैराग,
एकलव्य की लगन,
सूर के भजन,
कृष्ण की मित्रता,
गंगा की पवित्रता,
मां का ममत्व,
पारे का घनत्व,
कर्ण का दान,
विदुर की नीति,
रघुकुल की नीति प्रदान करे।

दीपावली की हार्दिक शुभकमनाओं सहित


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Thursday 8 October 2009

ब्लोग्स के जगत में हम नये हैं

ब्लोग्स के जगत  में हम नये हैं ,कदाचित नौसिखिये हैं . हम झिझक ते हैं ,क्यों की हम ने सुना की बोलना चांदी है तो चुप रहना सोना है

Tuesday 6 October 2009

ਇੱਕ ਉਮਰੋਂ ਲੰਮੀ ਬਾਤ

ਮੈਂ ਕੋਈ ਦਾਅਵਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਕਿ ਮੈਨੂੰ ਲਿਖਣਾ ਆਉਂਦਾ ਹੈ, ਆਲੋਚਕ ਵੀ ਮੈਂ
ਨਹੀਂ ਹਾਂ। ਤੁਸੀਂ ਸੋਚੋਗੇ ਕਿ ਜੇ ਮੈਨੂੰ ਲਿਖਣਾ ਵੀ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ ਤੇ ਮੈਂ ਆਲੋਚਕ ਵੀ ਨਹੀਂ
ਹਾਂ ਤਾਂ ਫਿਰ ਮੈਂ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਿਤ ਕਿਓਂ ਹੋਇਆ ਹਾਂ।
ਪੜ੍ਹਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਹੈਰਤ ਭਰਪੂਰ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਚਿੰਨ੍ਹ ਦੇ ਨਾਲ ਹਥਲਾ ਸਫਾ ਵਾਚ ਰਹੀਆਂ
ਹਨ ਓਹਨਾਂ ਦੀ ਉਤਸ਼ੁਕਤਾ ਦੇ ਉੱਤਰ ਵਿੱਚ ਮੈਂ ਏਨਾ ਕਹਿ ਦੇਵਾਂ ਕਿ ਮੈਂ ਵੀ ਓਹਨਾਂ ਵਾਂਗਰ
ਇੱਕ ਆਮ ਆਦਮੀ ਹਾਂ। ਜਿਹੜੀਆਂ ਤਕਲੀਫਾਂ ਓਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸੌਣ ਨਹੀਂ ਦੇਂਦੀਆਂ ਓਹਨਾਂ
ਤਕਲੀਫਾਂ ਨਾਲ ਮੈਨੂੰ ਵੀ ਅਵਾਜ਼ਾਰੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਜਿਹੜੇ ਮੱਛਰ ਬਿਜਲੀ ਕੱਟ ਵੇਲੇ ਓਹਨਾ
ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਸੌਣ ਦੇਂਦੇ ਹੋਣਗੇ ਓਹੀ ਮੱਛਰ ਮੈਨੂੰ ਵੀ ਪਰੇਸ਼ਾਨ ਕਰਦੇ ਹਨ।
ਆਏ ਦਿਨ ਵਧਦੇ ਪਟਰੌਲ ਦੇ ਭਾਅ, ਬਿਜਲੀ ਦੇ ਰੇਟ ਮੇਰੇ ਵੀ ਘਰ ਦਾ ਬਜਟ
ਡਾਵਾਂ-ਡੋਲ ਕਰਦੇ ਹਨ।
ਬੱਸਾਂ ਵਿੱਚ ਵਧਦੀ ਭੀੜ ਮੈਨੂੂੰ ਵੀ ਸੋਚੀਂ ਪਾਉਂਦੀ ਹੈ।
ਸਿਸਟਮ ਵਿੱਚ ਆਇਆ ਵਿਗਾੜ ਤੇ ਨਿਘਾਰ ਮੇਰੀਆਂ ਰਾਤਾਂ ਦੀ ਨੀਂਦ ਨੂੰ ਵੀ
ਖਾਈ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਮੈਂ ਆਮ ਆਦਮੀ ਹਾਂ Ž
ਪਰ, ਰਤਾ ਠਹਿਰੋ!
ਕੀ ਮੈਂ ਵੀ ਤੁਹਾਡੇ ਵਾਂਗਰ ਆਮ ਆਦਮੀ ਹਾਂ?
ਕੀ ਤੁਸੀਂ ਆਮ ਆਦਮੀ ਹੋ?
ਕੀ ਆਪਾਂ ਆਮ ਆਦਮੀ ਹਾਂ? !
-ਆਪਾਂ, ਜੋ ਬੱਚੇ ਦਾ ਹੱਥ ਫੜ ਕੇ ਬੱਚੇ ਨੂੰ ਲਿਖਣਾ ਸਿਖਾਉਂਦੇ ਅਧਿਆਪਕ ਹਾਂ
-ਆਪਾਂ, ਜੋ ਇੱਟ ਮਸਾਲੇ ਨੂੰ ਤਰਤੀਬ ਨਾਲ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰ ਕੇ ਘਰ ਉਸਾਰਦੇ
ਉਸਰੱਈਏ ਰਾਜ ਹਾਂ ਮਜਦੂਰ ਹਾਂ।
-ਆਪਾਂ, ਜੋ ਮਿੱਟੀ ਨਾਲ ਮਿੱਟੀ ਹੋ ਕੇ ਧਰਤੀ ਦਾ ਸੀਨਾ ਚੀਰ ਕੇ ਫਸਲ ਉਗਾਉਣ
ਵਾਲੇ ਕਿਰਸਾਨ ਹਾਂ,
-ਆਪਾਂ ਜੋ ਹੱਟੀ ਭੱਠੀ ਸੌਦਾ ਵੇਚਦੇ ਨਿੱਕੇ ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਹਾਂ।
-ਆਪਾਂ, ਜੋ ਘਰ ਗ੍ਰਹਿਸਥੀ ਸੰਭਾਲਦਿਆਂ ਧੀਆਂ, ਭੈਣਾਂ, ਮਾਵਾਂ ਹਾਂ
-ਕੀ ਆਪਾਂ ਆਮ ਹਾਂ? !
ਇਹ ਮੱਕਾਰ ਕਿਸਮ ਦੇ ਨੇਤਾ ਜਦ ਜਦ ਵੀ ਜਾਤ/ਧਰਮ/ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਨਾਂ ਤੇ ਦੰਗੇ
ਭੜਕਾਉਂਦੇ ਨੇ ਤਾਂ ਆਪਾਂ ਹੀ ਰਗੜੇ ਜਾਂਦੇ ਹਾਂ। ਹੜਤਾਲਾਂ ਮੁਜ਼ਾਹਰਿਆਂ ਵੇਲੇ ਆਪਣੀਆਂ
ਦਿਹਾੜੀਆਂ ਹੀ ਟੁੱਟਦੀਆਂ ਹਨ। ਆਪਾਂ ਨੂੰ ਹੀ ਪਰੇਸ਼ਾਨੀਆਂ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ।
ਸਰਕਾਰ ਜਿਹੜੇ ਟੈਕਸ ਲਗਾਉਂਦੀ ਹੈ, ਬਿੱਲ ਵਧਾਉਂਦੀ ਹੈ ਓਹਦਾ ਭਾਰ ਵੀ ਸਿਰਫ ਆਪਾਂ
ਨੂੰ ਹੀ ਜਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ। ਕਿਉਂਕਿ ਆਪਾਂ ਆਦਮੀ ਹਾਂ, ਆਪਾਂ ਨੂੰ ਆਮ ਆਦਮੀ ਆਖਿਆ
ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਕੀ ਆਪਾਂ ਆਮ ਆਦਮੀ ਹਾਂ! ? ਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਦੀਆਂ ਚੋਣਾਂ ਵੇਲੇ ਵਿਰੋਧੀ
ਬਣ ਕੇ ਖੜ੍ਹ ਨੇਤਾ ਲੋਕ ਆਪਾਂ ਨੂੰ ਚਰੂੰਡਣ ਵੇਲੇ ਇੱਕ ਮੱਤ ਦਿਸਦੇ ਨੇ। ਪੱਛੜਿਆਂ ਦਾ
ਪਛੜੇਵਾਂ ਦੂਰ ਕਰਦਿਆਂ ਕਰਦਿਆਂ ਓਹ ਆਪਣੇ ਪਛੜੇਵੇਂ ਦਾ ਇਲਾਜ ਕਰ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਫਿਰ
ਵੀ ਪੱਛੜੇ ਹੀ ਸਦਵਾਉਂਦੇ ਨੇ ਸਾਡੇ ਸਿਰਾਂ ਨਾਲ ਸ਼ਤਰੰਜ ਖੇਡਦੇ ਨੇ।
ਕੋਈ, ਟਿੱਬੇ-ਟੋਏ ਇਕਸਾਰ ਕਰਨ ਦਾ ਨਾਹਰਾ ਦੇ ਕੇ ਆਪਣੇ ਭਾਵਾਂ ਨਾਲ ਖੇਡ
ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਸਾਨੂੰ ਖਾਣ ਲਈ। ਸੱਜੇ।। ਖੱਬੇ। ਦਾ ਕੋਈ ਭਿੰਨ ਭੇਦ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦਾ ਪਰ ਸਾਨੂੰ
ਭਿੰਨ-ਭੇਦ ਦਰਸਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਓਹ ਸਮਝਦੇ ਹਨ ਕਿ ਇਹ ਤਾਂ ਆਮ ਆਦਮੀ ਹਨ; ਕੀ
ਆਪਾਂ ਆਮ ਆਦਮੀ ਹਾਂ?
-। ਓਹ। ਸਾਨੂੰ ਆਮ ਆਦਮੀ ਸਮਝਦੇ ਹਨ। ਓਹ ਸਮਝਦੇ ਹਨ ਕਿ ਅਸੀਂ ਓਹਨਾਂ ਦੇ ਵੰਡਿਆਂ
ਵੰਡੇ ਜਾਵਾਂਗੇ, ਓਹਨਾਂ ਦੇ ਭੰਡਿਆਂ ਭੰਡੇ ਜਾਵਾਂਗੇ, ਓਹਨਾਂ ਦੇ ਛੰਡਿਆਂ ਛੰਡੇ ਜਾਵਾਂਗੇ ਅਤੇ
ਓਹਨਾਂ ਦੇ ਚੰਡਿਆਂ ਚੰਡੇ ਜਾਵਾਂਗੇ।
-। ਓਹ। ਸਮਝਦੇ ਨੇ ਕਿ ਓਹ ਸਾਡੀ ਹੋਣੀ ਦੇ ਮਾਲਿਕ ਹੋ ਸਕਦੇ ਨੇ। ਓਹ ਸਾਡੇ
ਕੋਲੋਂ ਜੋ ਚਾਹੁਣ ਓਹੀ ਆਪਣੀਆਂ ਸ਼ਾਤਿਰ ਚਾਲਾਂ ਨਾਲ ਸਾਡੇ ਕੋਲੋਂ ਖੋਹ ਸਕਦੇ ਹਨ।
-ਓਹ ਸਮਝਦੇ ਹਨ ਕਿ ਸਾਡੇ ਕੋਲ ਸਿਰਫ ਪੈਰ ਨੇ ਹੱਥ ਨੇ ਪਰ। ਮੱਤ। ਨਹੀਂ
ਹੈ। ਓਹ ਸਮਝਦੇ ਨੇ ਕਿ ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਤੇ ਖੇੜ੍ਹਿਆਂ ਤੇ ਸਾਡਾ (ਆਮ ਆਦਮੀ ਦਾ) ਕੋਈ ਹੱਕ
ਨਹੀਂ। ਓਹ ਸ਼ਾਇਦ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦੇ ਕਿ ਅਸੀਂ ਆਮ ਆਦਮੀ ਕਿੰਨੇ ਕੁ। ਖਾਸ। ਹਾਂ। ਅਸੀਂ
ਤੁਰਦੀ-ਫਿਰਦੀ ਜਿਓਂਦੀ ਜਾਗਦੀ ਆਸ ਹਾਂ; ਆਪਣੇ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਅਟੁੱਟ ਵਿਸ਼ਵਾਸ
ਹਾਂ। ਆਪਣੇ ਸਕੇ ਸਬੰਧੀਆਂ ਦਾ ਧਰਵਾਸ ਹਾਂ। ਆਪਣੇ-ਆਪਣੇ ਵਾੜੇ ਵਿੱਚ ਕੈਦ ਸਾਦਗੀ
ਹਾਂ; ਸਿਰਫ ਰੋਟੀ ਲਈ ਹੋ ਰਹੀ ਬੰਦਗੀ ਹਾਂ।
-ਬੇਸ਼ੱਕ, ਅਸਾਡੀ ਤਾਕਤ ਬੇ-ਪਨਾਹ ਹੈ। ਇਸ ਤਾਕਤ ਨੂੰ ਵਰਤ ਕੇ ਓਹ ਸੱਤਾ
ਤੇ ਜਾ ਵਿਰਾਜਦੇ ਨੇ ਫੇਰ ਸਾਨੂੰ ਹੀ ਨਹੀਂ ਪਛਾਣਦੇ ਹਨ। ਆਪਣੀ ਗੱਲਬਾਤ ਵਿੱਚ ਸਾਨੂੰ ਹੀ
। ਬੋਝ।। ਗੰਦਗੀ। ਨਿਰੀ-ਸਿਰਪੀੜ ਗਰਦਾਨਦੇ ਹਨ।
-ਆਖਿਰ ਕਿਓਂ? ਆਖਰ ਕਿਵੇਂ?
-ਆਖਿਰ ਕਦੋਂ ਤੱਕ ਘਟੇਗੀ ਇਹ ਕਾਲੀ ਬੋਲੀ ਰਾਤ, ਕਦੋਂ ਦੀਪ ਨਾਲ ਦੀਪ ਬਾਲ
ਏਨੀ ਕੁ ਰੌਸ਼ਨੀ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਹੋ ਸਕੇਗਾ ਕਿ ਰਾਤ ਹੀ ਜਾਪੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਪ੍ਰਭਾਤ।
-ਸਾਥੀਓ ਕੀ ਚੱਲੇਗੀ। ਏਹੀ।। ਏਦਾਂ ਹੀ। ਉਮਰੋਂ ਲੰਮੀ ਬਾਤ? ? ?
-ਕੀ ਚੱਲਦੀ ਰਹੇਗੀ ਉਮਰੋਂ ਲੰਮੀ ਬਾਤ Ž


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Friday 2 October 2009

एक और २ अक्तूबर गुजर गया

मित्रो प्यारो एक और २ अक्तूबर गुजर गया ;सच बताना आज के दिन आप ने किस को याद किया ? राष्ट्रपिता कहलाने वाले गांधीजी को अथवा जय जवान; जय  किसान का विजय दायक घोष देने वाले नाटी काया विराट स्वरचित आभा-मंडल वाले विराट पुरुष लाल बहादुर शास्त्री जी को ?
देखिये यदि आप अन्यथा न लो तो एक बात कहूँ ?
गाँधी जी का दर्शन भूल कर 'गांधी के दर्शन' को अपना रखा है क्यूंकि गाँधी जी का दर्शन अपनाना कठिन है और गाँधी जी के दर्शन तो आजकल हर करंसी नोट पर  सहज हो जाते हैं ..
१२ मास ३६५ दिन २४ घंटे हम भारतीय गाँधी जी के दर्शन को ललचाते हैं . गाँधी जी के दर्शन कर पाषाण ह्रदय भी मोम हो जाता है . आप ये बात मानो न मानो मै मानता हूँ .
३६५ दिन गाँधी के सहारे चलने वाले कार्यालयों में आज अवकाश था तो समय था की उस गुदडी के  लाल ,लाल बहादुर शास्त्री जी को भी याद कर लिया जाता .
अनुकरणीय ,अनुसरणीय व्यक्तित्व को सलाम करते ,तनिक रुक कर सोचते की क्या था इस नाटी काया वाले विराट माया के माया पति के पास की रीते हाथ भी वो धनियों से  धनी थे .
आज यदि वो होते तो भारत की दशा/दिशा भिन्न होती .. अथवा न होती...इस बात को आप के पाले में छोड़ता हूँ ,क्यूँ की हम कुछ बोलेगा तो बोलो गे की बोलता है ....

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Thursday 1 October 2009

मरने को विवश होती है लडकियाँ ...






मित्रो , गुलाबी सा मौसम है . लेकिन सोच के दायरे उलझे उलझे है . जनाब आप की सोच के नहीं ,मेरी सोच के दायरे उलझे उलझे से हैं. क्या पूछते हो जनाब क्यूँ? क्यों  उल्झे  हैं ?
बताता हूँ ,बताता हूँ ...
सुनिए मोहतरम ! दुर्गा -अष्टमी के अगले रोज़ ही अख़बार कन्याओं की घट रही संख्या को ले कर काफी कुछ लिखा,पढा रहे थे. हम हर साल इस मौके पर ऐसा लोइख पढ़ते हैं छोड़ देते हैं .कन्या भ्रूण हत्या को ले कर काफी कुछ लिखा जाना एक लम्बे समय से जारी है .
मित्रो गर्भ से बच कर जन्म लेने वाली कन्या को कब कब कितनी बार मरना पड़ता है इस के बारे भी ये सुधि जन जानते होंगे . मैली नजरों के वार ,रह चलते कानों में पिघले सीसे की सी पडती फ्बतिआं,दहेज उत्पीड़न , बलात्कार , दुराचार ,शोषण ,इत्यादी इत्यादी कितने मोडों पर मरने को विवश होती है लडकियाँ ...
कन्या भ्रूण हत्या पर लिखने वाले सुधि जन ,कदाचित इस का निदान भी जानते होंगे और उपचार भी .  
हम बोले गा तो बोलोगे की बोलता है



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Friday 11 September 2009

हम कौन हैं किस के नाम लेवा हैं ? गुरु गोबिंद सिंह के अथवा औरंगजेब के ??

भय भंजना वन्दना सुन हमारी ,

सरस्वती के वीणा तार ,करें झंकार ,सुनाएं धवल कीर्ति गाथा 

कविजन जन को .
 
किन्तु जो उठते है मन अटल वितल सुतल पर झंझावात का से 

कहूं ?

में भीरु हूँ कायर हूँ में है स्वीकार मुइझे ,में घूमने वाली हर कुर्सी 

से डरता हूँ डर- डर मरता हूँ . सब से चिचली अंगुली पर लहू लगा 

कर शहीदों में नाम करना चाहता हूँ .में चाहता हूँ बोलूँ ,बोलें ,मेरे  

बोलने पर तो रहें बोलते . किन्तु कीन्हों ने भगत सिंह की नहीं 

सुनी नानक की नहीं सुनी गौतम की नही सुनी वो मेरी क्या सुने 

गे .

प्रश्न भी तो ढंग  के नहीं पूछ पाता मैं. उत्तर देने का शऊर भी  नहीं 

. जूते खाने लायक कपाल भी नहीं बची अब तो . नहीं तो मैं पूछ 

ही लेता क्या कसूर था औरंगजेब का ? क्या कसूर है सच्चा सौदा 

का ? और पूछ हे लेता की हम कौन हैं किस के नाम लेवा हैं ? 

गुरु गोबिंद सिंह के अथवा औरंगजेब के ??
 
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