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किताब "बोलोगे की बोलता है "का कलेवर ...

किताब "बोलोगे की बोलता है "का कलेवर ...
...बोलोगे कि बोलता है

...बोलगे कि बोलता है ,आन लाइन


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Wednesday, 29 July 2009

चश्म ,चश्मा ,चश्मेबद्दूर



.

सुबह से शाम तक आप हम कितनो से मेल-मुलाकात करते हैं . उन में से कुछ हमारे अपने होते हैं , कुछ को हम पहचानते हैं कुछ को हम जानते पहचानते भर हैं .
इन सभी के चेहरे याद कीजिये , कीजिये न , तनिक देख सोच क्र बताना क्या समानता है इन सभी के चेहरों में ?
अजी कोशिश तो कीजियेगा , क्या कह रहे हो सभी अलग अलग हैं ?!
अब देख कर बताना , फिर वही जवाब..
बन्धुवर मुझे लगता है की मेरा अमृतसर /शाहदरा /आगरा जाने का समय आ गया है .
यदि नहीं तो मुझे क्यों लगता है की सभी के चेहरों में एक समानता है .. है तो है .. क्या पूछा कौन सी??देखिये न , न जाने मुझे ऐसा क्यूँ लगता रहता है जैसे हर किसी ने चश्मे चढा रखे हों .

न सिर्फ खुद चढा रखे हों बल्कि यूं भी सोच रहा हो की जो चश्मा मेरे चढा हुआ है वही दुसरे की नाक पर भी बैठा होना चाहिए . बिना मेरे जैसे चश्मा पहने हर चश्म ही च्श्मे बद हो और हर किसी का ये सोचना होता है की चश्म - ए-बद- दूर .

आप को ऐसा नहीं लगता ? अब में क्या बोलूँ!?

हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है

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