
हिन्दू शक्ति पीठों में दो शक्ति पीठों के दर्शनों के लिए जाने का अवसर मिला तो मैं अपनी लालसा का संवरण नहीं कर पाया ।
हिमांचल परदेस के चिन्तपुरनी -ज्वालाजी नामक दो शक्ति पीठों के दर्शन करने की अभिलाषा लिए हम ,यानि मैं और मेरे वृद्ध माता जी ,मेरी धर्मपत्नी एवम मेरे पाँव दर्जन बच्चे हम जय माता दी कह कर चल दिए ।
एक संक्रान्ति ,दूसरे शनिवार तीसरे पंजाब के स्कूलों में ग्रीष्मकालीन अवकाश सोने पर सुहागा वाला काम हो गया भक्त जनों की भीड़ दर्शनीय थी ।
महामाई ने अपने दर्शन तो दिए , बे शक किलोमीटर भर लम्बी कतार में इतजार की तपस्या करवा कर दिए , साथ ही हमी दिखाया की लोग वहाँ आकर भी अपनी बन्दर घुलाटियाँ मारना नहीं छोड़ते । कतार तोड़ना , अपनी बारी का इंतज़ार न करना , सोर्स फोर्स , और पिछले दरवाजे का इस्तेमाल ;भारत भर की सभी खूबियाँ एन देवी द्वारों पर एक साथ देखने को मिलीं । महात्मा गांधी की यहाँ भी जय थी शायद ??
सब देख कर स्वअनुशासन की कमी अखरी महसूस हुआ की हम श्रधा आस्थानों पर जाकर भी अहम नही छोड़ते । प्रबन्धन करने वाले भी कुप्रबन्धन में जुटे दिखे ।
ज्वाला जी में दर्शनार्थियों की मुख्य मन्दिर में जो दुर्दशा देखीमैं सहर उठा , करीब एक किलो मीटर लम्बी कतार की तपस्या के बाद जब हम मुख्य मन्दिर मैं प्रवेश करने लगे तो धक्कम पेल की पराकाष्ठा देखने को मिली । मेरे वृद्ध माता जी और मेरे समेत मेरी बीवी बच्चों के सभी का दम घुटने को हो गया था ।
मेरे मन में एक बात आई की लाखों करोडों बच्चो की अराध्य माँ, करोडों रूपया चदावा प्राप्त करने वाले शक्तिपीठों में भक्तों की यह दुर्दशा , आख़िर क्यों ? आख़िर कब तक ??
हम बोलेगा तो बोलो गे की बोलता है
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