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किताब "बोलोगे की बोलता है "का कलेवर ...

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...बोलोगे कि बोलता है

...बोलगे कि बोलता है ,आन लाइन


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Tuesday, 18 August 2009

ये भी मैं हूँ वो भी मैं ही ..

ये भी मैं हूँ वो भी मैं ही ..
एक बूँद गिरी पर गिरे कभी जो मैं ही हूँ .
एक बूँद धरा पर गिरी कभी जो मैं ही हूँ .
एक बूँद अरिहंता बन गिरी समर-आँगन में ,
एक बूँद किसी घर गिरी नवोढा नयनन से ,
एक बूँद कही पर चली श्यामल गगनन से '
एक बूँद कहीं पर मिली सागर प्रियतम से ,
वो बूँद बनी हलाहल जानो मैं ही हूँ ,
वो बूँद बनी जो सागर जानो मैं ही हूँ,
वो बूँद बनी पावन तन जानो मैं ही था ,
वो बूँद बनी प्यासा मन जानो मै ही हूँ .
हर बूँद बूँद में व्यापक व्याप्त मैं ही हूँ
हर बूँद का मालिक पालक बालक मैं ही हूँ .
मैं सागर बादल कमल दामिनी गंगाजल ;
मैं पर्वत गहन गम्भीर हूँ जैसे विंध्यांचल .
बिरहन के मन की पीर से भीगा हूँ आंचल ,
मैं कुल ब्रह्मांड की बेटियों का धर्मी बाबुल .
मैं आदि अनादि मैं मध्य हूँ मैं ही हूँ अनंत ;
मै ग्रीष्म शिशिर हेमंत हूँ मै ही हूँ वसंत .
मैं बीज हूँ जड़ भी मैं ही फल फूल भी मैं .
मैं वो हूँ वो मैं ही हूँ जल कूल भी मैं .
मैं ही हूँ वर्ग पहेली ,वर्ग भी शब्द भी मैं .
मैं ही हूँ रस राग रंग का अर्थ भी मैं .
मैं जान अजान का भेद हूँ मैं ही हूँ ज्ञाता .
कुछ समझना बाकी न है , समझ भी न आता .
वो मायापति अकाल दयाल विशाल भी मैं .
वो घुटनों चलता मूढ़ मती जो बाल भी मैं
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