दोस्तों , आज दिमाग खुजिया रहा है , आप अपना अपना जूता उतार कर अलग रख दीजिये गा पहले फिर में अपनी बात कहनी शुरू करूं गा . जी , मैं अनुभव कर रहा हूँ कि हमारी संस्कृती में पाए जाने वाले रिश्तों का अकाल पढ़ने वाला है . ये जो हम दो हमारा एक वाले नारे की वकालत होने लगी है न इसके चलते ये अकाल अतिशीघ्र पड़ जाये गा . अब मौसी ,चाचा ताऊ, बुआ , जैसे नाते भी अजायब घरों का सिंगार हो जायेंगे . ददिया सास चचिया सास फुफिया सास जैसे नाते तो पहले से ही अपनी आखरी सांसें गिन चुके .
मौसी भी कदाचित अंतिम पीढी को भोग रहीं है . यदा कदा ताऊ चाचू अभी भी यत्र तत्र मिल जाते हैं किन्तु ये हम दो हमारा एक वाले...इस नाते के भी बैर पडे लगते हैं . कदाचित ये निजी राइ है निजी फैसला हम बोल ही क्यों रहे हैं .. अक्सर हम बोलें तो लोग बोलते हैं की बोलता है .
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