पिछला दरवाज़ा ,
कदाचित भारत दुनिया का एक मात्र देश हैं जहाँ की भाषा परिभाषा अलोकिक है , यहाँ पर हर बात की बात बनाई जा सकती है । विलायत वालों की देखा देखि यहाँ भी हफ्तावार आमदनी का चलन ज़ोर पकडा होगा । दीपावली दशहरा तीज त्यौहार का सौहार्द भाई चारा यहाँ की अनूठी परम्परा है ।
यहाँ के कार्यालयों में ये सब धूम धाम देखा जा सकता है । विलायत वाले लाख यतन कर लें हमारे कार्यालयों जैसे कार्यालय वो सात जन्म तक नही बना सकते । उनके यहाँ कार्यालयों में अनेक सुविधाएं हों तो हों किन्तु हमारी तरह के पिछले दरवाजे वो चाह कर भी नही बना सकते । उन को तो रेगुलेरिटी और सिस्टम से चलने का रोग जो है और हम ठहरे निरोगी काया ।
हम , जो प्रयोग करें या न दुरूपयोग जरूर करते है वो फ़िर पानी हो अथवा वाणी । हमारे यहा जितना कुछ सामने के दरवाजे से नही हो पाता उस से कही ज्यादा पिछले दरवाजे से हो जाता है , संतरी से ले कर मुख्या मंत्री तक इस पिछले की दरवाजे की महिमा से अवगत हो चुके हैं । तभी तो अपने नौनिहालों को मुख्य मंत्री की कुर्सी पर बिठाने की तय्यारी भी आजकल पिछले दरवाजे से ही की जाती है ।
कुछ को ये भी कहते सुना है की पिछले दरवाजे का प्रयाग ओछे और छिछले लोग करते हैं ,कोई सुनता/मानता ही नही । जब किसी ने सुन ना / सुधरना ही नही तो हम क्यो बोलें? हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है ॥
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