रह रह कर अपनों को याद करने का आनंद और है , और अपनों के संग का आनंद और है , अपनों की सेवा करने का आनंद और है तो अपनों से सेवा करवाने का आनंद और है .
अपनों का अपनापन वोही जाने जिस ने अपनों के अपनेपन का आनंद उठाया होता है ,आप किसी भी दूकान पर जाओ आपको मंद मंद मुस्कान के साथ नमस्कार कहने वाले दूकानदार बिरादरी के लोग आपपर अपना सारा अपनत्व न्येछाव्र करते मिलेंगे , मुख से नमस्कार कहेंगे कितु उस नमस्कार को यदि ह्रदय भाँपी यंत्र से सुनोगे तो पाओगे की वो नमस्कार नही कह रहे बल्कि नया - शिकार पुकार रहे होते हैं .
मोलभाव करते समय ये कहना कभी नही भूलते ,आप तो जी हमारे अपने हो आप को ज्यादा थोडे बतायेंगे ..[भाव की बिना बताये लगायेंगे , आप ने कौन सी शिकायत करनी होगी?!]
किसी अपनें का अपनें शेहर अफसर बनकर आना .... वाह करेला नीम पर चढ़ जाता है . वक्त बेवक्त फोनिया देंगे अमां आप सपना ही हो गये मिलो तो सही कभी , अजी कभी क्यूँ आज ही मिल लो न , अब हम भी हर किसी से बे तकल्लुफ नही होते आप तो अपने हैं, आज आओ तो दस जनों का खाना पकवा लाना ... तुम्हारे यहाँ की बिरयानी एक बार खायी थी आज दुबारा खाने का मन हुआ है व्ही बनवा लाना .
राजनीति तो अपनी और अपनों की बपौती बन कर रह गयी है .
ये अपनें , अपनों का इतना लहू पीते है की किसी जोंक टाइप नेता को कोसों पीछे छोड़ जाते हैं ,
आप तो बचे होंगे , लेकिन हमें क्या हम को सरदर्दी कैसी , हमें तो अन्तत पता है की आप की राइ अपनी होगी और हम कुछ और बोले गा तो बोलो गे की बोलता है...दीप्जीर्वी ..
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