कई बार हमें अनचाही यात्राओं पे निकलना पड़ता है ... गुज़रे दस दिन मै भी सड़कों , गलियों, पगडंडियों , पहाड़ी रास्तों पे रहा । जो कुछ देखा सुना या जाना वो ही दर्ज करने का इरादा है :
शहरों में से गुजरो तो गंदगी का आलम. कचरे की शक्ल में प्लास्टिक ,प्लास्टिक ग्लास , प्लेट्स (मर्रिज पैलेस का गंद ) ,फ्रिजों कम्प्यूटरों मोब्यइलों का कचरा , सीडी , गत्ते वगैरा वगैरा ।
शहरों से बाहर निकलो तो कचरा गायब होता जाता है ,
गावों के पास सब साफ़ सुथरा ,सिर्फ़ रूड़ी यानि गोबर भूसा , इधर उधर उड़ता कोई प्लास्टिक का लिफाफा ,निपट अकेला ...उपहासजनक !!
और हम शहरवासियों को सफाई का कितना गुमान रहता है ...जबकि हम गंदगी फैलाने में माहिर ,बेहद गंदे ।
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बहुत सारे मंदिरों में घूमा .वहां पाया की हमारे देवी देवता तो हीरों ,जवाहरातों सोने चांदी के आभूषणों के बिना बनाये ही नहीं जाते ।
मूषक ,गौ माता भी आभूषणों से लदे फदे जबकि जीती जागती जिंदा गौ माता हम शहर वासियों द्वारा फैंकी गंदगी
खाने को मजबूर ,मूषक की बात छोड़ देते हैं ।
मंदिरों की बात छोड़ ,हमारे कैलेंडरों पर भी जो देवी देवता छापे जाते हैं सब के सब मुकुटों आभूषणों से लदे फदे ।
बेशक महमूद गजनी हमें बार बार लूटता रहा ...
बेशक आजकल किसानों द्वारा आत्महत्या की खबरें शहरवासियों को बकवास लगती हैं .
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एक विख्यात इंजीनियरिंग कॉलेज में स्नातकोत्तर विद्यार्थिओं को भाषण देने का आमंत्रण था । आदतानुसार भाषण से पहले अकेला कॉलेज के विशाल परिसर में घूमने निकल पड़ा । सुंदर सी जगह पर महंगे वाटर कूलर के पास कुल २२ गमले पड़े देखे ...सभी में पोधे सूखने कुम्लाहने की कगार पर ।
पास में युवा लड़के लड़कियां , भारत के भावी इंजिनियर ,एम्.बी.ऐ ......
मैंने जानबूझ कर पुछा "कौन से फूल हैं इन में ",
"पता नहीं सर", बहुत सारी मुस्कुराहटों ने जवाब दिया ।
"आप इन में पानी नहीं दे सकते ? कूलर तो पास में ही है मैंने कहा ।
"यह हमारा काम नहीं सर ", मुस्कुराहटें और भी घनी हो उठीं ।
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ज़ाहिर है की उस दिन मुझे अपना लेकचर पूरा का पूरा बदलना पड़ा ।
dr ernest albert ka mujhay mila ek ek e mail
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