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किताब "बोलोगे की बोलता है "का कलेवर ...

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...बोलोगे कि बोलता है

...बोलगे कि बोलता है ,आन लाइन


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Tuesday, 9 June 2009

पापा कहते थे


जब चाँद में बुढ़िया का चरखा कातना सच था । जब मट्टी के घरौंदे बनाना अच्छा लगता था , जब हम सर से पाँव तक अपने पापा की आकांक्षा थे पापा कहते थे " "।


जब अलहढ़ उम्र हमारी थी ,जब आंखों में बसी खुमारी थी , जब हम को नींद प्यारी थी , पापा कहते थे :" "

जब चाल में मतवाला पण था , जब आ के लौटा बचपन था , जब सपनों में सारंगी थी , जब ये दुनिया नवरंगी थी ,

पापा कहते थे " "

जब रोक भली न लगती थी , जब टोक भली न लगती थी , अपने सपनों पर यौवन था ,

पापा कहते थे: " "

पापा कहते थे जग जाओ , अपने किसी ध्यय को अपनाओ , सपनों के पीछे मत भागो , ऐ मूढ़ उठो निद्रा त्यागो । तुम देश को क्या देते हो सुनो इस बात पे अपना सच जानो , अपने को बेटा धन्य मानो । तुम भारत भू के बेटे हो । माँ भारती अपनी जननी है । इस की सेवा भी करनी है । तुम कानों को खुला रखना , तुम आँखों को खुला रखना , अपनी जिव्हा को कस रखना ।

बिन बात बात करना न कभी ,जिव्हाघात न करना कभी ,भर जाते घाव हैं गोली के , भरते न घाव पर बोली के । टीबी से हम कुछ न कहते हैं , बस देखते हैं सुन लेते हैं ।

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